रांची: केंद्रीय धूमकुड़िया भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में आदिवासी हुंकार महारैली (17 अक्टूबर 2025, प्रभात तारा मैदान, धुर्वा, रांची) के उद्देश्य, महत्व और तैयारी पर चर्चा करते हुए कुर्मी (कुड़मी) जाति को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने की मांग के खिलाफ आदिवासी समाज की एकजुटता पर जोर दिया गया है। यह महारैली आदिवासी अस्तित्व, अधिकारों और पहचान की रक्षा के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। इससे बिंदुवार विस्तृत जानकारी दी गई है।

  1. महारैली का परिचय और उद्देश्य
    मुख्य बिंदु :- 17 अक्टूबर 2025 को रांची के प्रभात तारा मैदान में “आदिवासी हुंकार महारैली” का आयोजन हो रहा है, जो कुर्मी/कुड़मी समुदाय की ST दर्जा की मांग के खिलाफ आदिवासी समाज की एकजुट हुंकार का प्रतीक बनेगी। यह रैली केवल विरोध नही, बल्कि आदिवासी अस्मिता, संवैधानिक अधिकारों और भविष्य की रक्षा का संकल्प है।
    इसमें भारी संख्या में आदिवासी (संथाल, मुंडा, उरांव, हो, भूमिज, खड़िया, बेदिया, लोहरा,कोरबा, बिरहोर, चेरो, भोक्ता, खेरवार सहित 33 आदिवासी समुहों) भाग लेंगे। इसका उद्देश् कुर्मी समाज को ST सूची में शामिल न करने की मांग को केंद्र सरकार तक पहुंचाना है। यह रैली आदिवासी बचाओ मोर्चा और राज्य भर के विभिन्न आदिवासी संगठनों के संयुक्त आह्वान पर हो रही है।
    हमलोगों की ओर से सभी आदिवासी भाइयों-बहनों से आह्वान है कि पारंपरिक वेशभूषा, हथियार और झंडों के साथ शामिल हों।
  2. कुर्मी जाति की ST मांग का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरोध।
    कुरमी/कुड़मी समुदाय आदिवासी नही हैं। वे OBC समुदाय हैं। ST दर्जा देने की मांग ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने का षड्यंत्र है, जो आदिवासी पहचान को कमजोर करेगा।
    ऐतिहासिक विद्रोहों (चुआड़, कोल, संथाल) में कुर्मी नेताओं (जैसे रघुनाथ महतो, बुली महतो, चान्कू महतो) को जबरन आदिवासी इतिहास से जोड़ा जा रहा है, जबकि ये विद्रोह आदिवासी नेतृत्व के थे।
    जनजातीय अनुसंधान संस्थान (TRI) ने स्पष्ट किया है कि कुरमी /कुनबी (OBC) की उप-जाति है, न कि जनजाति है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी इस मांग को खारिज किया है।
    कुरमी समाज आर्थिक रुप से सक्षम है (उद्योग, कृषि, व्यापार में मजबूत), जबकि आदिवासी सदियों से जंगल-जमीन-संस्कृति के संरक्षक रहे हैं।
    हमलोगों की अपील है कि ऐतिहासिक सत्य को न तोड़े मोड़ करें। यह आदिवासी गौरव का अपमान है।
  3. ST दर्जा देने के नकारात्मक प्रभाव।
    कुरमी/कुड़मी जाति को ST बनाने से आदिवासियों के 26% आरक्षण, नौकरियां, शिक्षा, राजनीतिक प्रतिनिधित्व- हिस्सेदारी और भूमि अधिकार खतरे में पड़ेंगे। यह आदिवासी हक का हनन होगा।

यह आरक्षण पूल में कुर्मी (झारखंड में 11% आबादी) के शामिल होने से आदिवासी युवाओं की नौकरियां (सारकारी, PSU) और शिक्षा (मेडिकल, इंजीनियरिंग) के अवसर कम हो जाएंगे।
इससे राजनीतिक रुप से आदिवासी विधायकों/सांसदों की सीटें प्रभावित होंगी, जो झारखंड की स्थापना का आधार हैं।
इससे भूमि अधिकार (PESA, CNT/SPT एक्ट) पर असर पड़ेगा।कुरमी जाति की घुसपैठ से आदिवासी विस्थापन बढ़ेगा।
20 सितंबर को कुरमी कुड़मी जाति द्वारा का रेल रोको आंदोलन के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप राज्य के विभिन् जिलों में आदिवासी आक्रोश रैलियां हुईं।

  1. महारैली की तैयारी और राज्यव्यापी एकजुटता।
    राज्यभर से आदिवासी संगठनों ने तैयारी कर दी है। जनसंपर्क अभियान, आमसभाएं लगातार हो रही हैं। इस आदिवासी हुंकार महारैली में महिलाएं, युवा, बुजुर्ग सभी पारंपरिक नृत्य, गीत और नारे (जैसे “आदिवासी एकता जिंदाबाद”) के साथ शामिल होंगे।
    हमलोगों की अपील है कि सभी जिलों से बस/ट्रेन से रांची पहुंचें। ट्रैफिक/सुरक्षा का पालन करें।
  2. सरकार और केंद्र से मांगे जाने वाली मांगें
    आदिवासी प्रतिनिधियों कीस्वतंत्र समिति गठित कर ST पात्रता की जांच हो। कुरमी जाति की एसटी मांग पर स्थायी रोक लगे।
    अपील: राजभवन/दिल्ली तक ज्ञापन पहुंचेगा; समर्थन दें।
  3. मीडिया और समाज से अपील
    है कि मीडिया सच्चाई दिखाए,न कि सनसनी। आदिवासी समाज के संघर्ष को लोग समर्थन दें।
    इस आदिवासी हुंकार महारैली को झारखंड उलगुलान संघ के दो प्रतिनिधि जॉन जॉनसन गुड़िया और सुदर्शन भेंगरा ने भी सक्रिय समर्थन की घोषणा की है।
    इस संवाददाता सम्मेलन को देवकुमार धान,
    लक्ष्मीनारायण मुंडा,प्रेमशाही मुंडा, नारायण उरांव,बलकु उरांव, दर्शन गोंझू,अभय भुटकुंवर , बबलू मुंडा, जगलाल पाहन,जॉन जॉनसन गुड़िया, सुदर्शन भेंगरा ने संबोधित किया।

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